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प्रेम-पथ
14th Feb 2025प्रेम-पथ
‘प्रेमी के सन्देश को, सुने प्रेम का धाम। पाय प्रेमी सुप्रेम को, जपे प्रेम से नाम ।।’
पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के अनुसार- प्रेम के पथ में बड़ी पवित्रता है। यह पवित्र प्रेम, पंडितों ने, पांच प्रकार का कहा है, उनमें से –
- एक तो अपत्य प्रेम है जो माता-पिता का पुत्र-पुत्री में हुआ करता है।
- दूसरा- सम्बन्ध-सम्बन्धी प्रेम है जो बंधुओं का बंधुओं में, संतानों का माता-पिता में, पति-पत्नी का एक-दूसरे में और मित्रादिकों में परस्पर पाया जाता है।
- तीसरा – निश्चय और विश्वास का प्रेम है जो धर्म-कर्म में धार्मिक जनों में होता है।
- चौथा – देश तथा जाति का प्रेम है।
- पाँचवां- आत्मा और परमात्मा का प्रेम है। यही पंचम प्रेम उपासकों को परम पावन पद में पहुँचाता है और यह सर्वोत्तम प्रेम मोक्ष का दाता माना गया है।
वास्तव में, आत्मा तो अमृत है, सत्य है तथा प्रिय स्वरूप है। इसको वही पथ प्रिय है जो अमृत का है, सत्य का है तथा जिसमें प्रेम पाया जाय। आत्मा की तृप्ति तो अनन्त प्रेमामृत को पान करके होती है, इस कारण यह अपने परम प्रिय स्वरूप को अनंत प्रेममय श्रीराम से मिलाना चाहता है। इसको न तो अपने ज्ञान की, न अपने सुख की, न अपनी शक्ति की, न अपने होने की और न ही अपने प्रेमानन्द की सीमा सन्तोष देती है। यह तो स्वभाव से, नदीवत् इन सबके असीम सागर, श्रीराम की ओर ही अनुसरण कर रहा है। इसका उद्देश्य अनंत है। इसकी परितृप्ति अनंत प्रेम में है। इसका परम विश्राम, अनंत प्रेम का पद, परम सुख धाम श्रीराम है। इसकी मुक्ति, परम पावन श्रीराम का मंगल मिलाप है।
[भक्ति-प्रकाश]
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर