ध्यान का महत्व
26th Apr 2025
लेख पढ़ें >
मृत्यु भयंकर क्यों है?
30th Nov 2024मृत्यु भयंकर क्यों है?
संसार के सभी प्राणी-मात्र मृत्यु के नाम से कांपते हैं, सब जीवन चाहते हैं। परन्तु विचारणीय बात यह है कि जीवन क्या और मृत्यु क्या है ? आत्मा और शरीर के संयोग को जीवन और उनके वियोग को मृत्यु कहते हैं। आत्मा अमर है, पंच भौतिक चोला नाशवान है। ज्ञानी, अज्ञानी, विद्वान, अविद्वान, निर्धन, दुःखी, सुरखी सभी इसके नाम से घबराते हैं। एक मनुष्य शरीर से रोगी, जेल यातना भुगतते हुए भी मृत्यु के नाम से अपने कानों पर हाथ धर लेता है।
एक वैज्ञानिक की जीवन घटना भी सुनिये – ‘लाप्लास’ फ्रांस का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुआ है। उसने एक महान् ग्रंथ सूर्य, चन्द्र व नक्षत्र के विषय में तैयार किया। ग्रंथ छपने पर उसकी एक प्रति नेपोलियन को भेंट की।
नेपोलियन ने उसको आद्योपान्त (पूरा) पढ़ा और लाप्लास से प्रश्न किया आपने इसमें जगत् कर्ता ईश्वर का कहीं जिकर नहीं किया। लाप्लास ने उत्तर दिया- मैंने जगत् उत्पत्ति के विषय में ईश्वर की कोई आवश्यकता अनुभव नहीं की। इस उत्तर पर नेपोलियन चुप हो गया। लाप्लास ने जब यह अनुभव किया कि अब जीवन का अन्त होने वाला है तो वह घबरा गया और कहने लगा- (God’s Love is greater than my thousands of mathematics)
ईश्वर से प्रेम करना मेरी हजारों गणितों से उच्चतर है। परन्तु अब क्या हो सकता था जबकि जीवनकाल उस ओर से आँख मूंदकर गंवा दिया।
पूज्यपाद श्रीस्वामी जी महाराज जी ने भी अनुवादित श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित किया है- ‘जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़कर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है।’ ऐसा कौन है जो नये वस्त्र के प्राप्त होने पर प्रसन्न न होवे और जीर्ण-शीर्ण भक्तिहीन शरीर के त्यागने में क्लेशित होवे। परन्तु अविवेक के कारण लोग दुःखी देखे जाते हैं।
“क्षण भंगुर जीवन की कलिका, कल प्रात को जाने खिली न खिली !
मलयाचल की शुचि शीतल मंद, सुगंध समीर मिली न मिली !
कलि काल कुठार लिये फिरता, तन नम्र से चोट झिली न झिली !
भजले हरि नाम अरी! रसना, फिर अंत समय में हिली न हिली !”
[राम सेवक संघ, ग्वालियर के वरिष्ठ साधक की धरोहर से]
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर