ध्यान का महत्व
26th Apr 2025
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ध्यान का महत्व
26th Apr 2025ध्यान का महत्व
परमात्मा की प्राप्ति के लिये, आत्मस्वरूप को देखने के लिये वृत्तियों को फोकस करो अर्थात् मन, चित्त-वृत्ति को एकाग्र करके लक्ष्य पर एक सीध से देखना। जब तक फोकस नहीं होगा, परमात्मा कैसे दिखाई देगा ? एक सीध में आ जाना ही ध्यान लगाना है। जो मन में हो, वह वाणी में और जो वाणी में हो, वह कर्म में। जो अपने आपको शुद्ध कर लेता है, वही निर्दोष होकर शुद्ध-बुद्ध होकर प्रभु के निकट होता है। इन्द्रियरूपी शीशे को साफ करो, मल धोओ, मार्ग सीधा-साफ हो जायेगा। अभ्यास करने से, प्रार्थना नियम से करने से, जीवन नियमित हो जाता है। प्रभु-कार्यों में सफलता लाने के लिये जीवन पवित्र बनाओ। ईश्वर पर दृढ़ विश्वास करो।
रोग व दुःख साधक के लिये परीक्षा हैं। हिम्मत से बाधाओं को जीतना चाहिये। जो प्रभु पर दृढ़ विश्वास करके कठिनाइयों को जीत लेता है, प्रकृति माता उसके लिये द्वार खोलती जाती है, मार्ग स्वच्छ करती जाती है। जो नियम से, ठीक-ठीक नहीं चलते, किवाड़ उन्हीं के लिये बन्द होते हैं। निश्चयपूर्वक प्रार्थना करो, प्रभु से मिलाप करो, वरना समय भागा जा रहा है। फिर हाथ नहीं आना। समय अमूल्य धन है। (-पूज्यपाद श्रीस्वामी जी महाराज)
ध्यान में हम अन्दर से पवित्र होते जाते हैं। कई जन्मों के पाप-कर्म कटते जाते हैं। वासनायें दूर होती जाती हैं। संचित-कुसंस्कार दूर होते जाते हैं। शान्ति व पवित्रता मिलती है। इसी जीवन में शान्ति मिले, पवित्रता मिले, धर्म में, कर्म में, जीवनयापन करें। आगे मोक्ष मिलेगा, परम-शान्ति लाभ होगी कि नहीं यह किसने देखा है ? इसी जीवन में हम शान्त या पवित्र रहें, इतना ही काफी है। पवित्रता, शान्ति तथा बल प्राप्त करने का सरलतम, श्रेष्ठतम और अति प्रभावशाली साधन’ध्यान’ है।
‘ध्यान’ राम-कृपा प्राप्त करने का समय है। हमें उस समय ग्रहणशील बनना है। इस समय हमारा –
- पात्र उल्टा न रखा हो,
- पात्र छोटा भी न हो, और
- पात्र भरा भी न हो।
अतः अपना पात्र सीधा, बड़ा, खाली रखो, राम-कृपा तभी भरी जायेगी। –पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज (हरिद्वार, 2003)
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर