ध्यान का महत्व
26th Apr 2025
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बारह मास वसन्त
01st Feb 2025बारह मास वसन्त
जो जन प्यारे राम के, यौवन युग को पाय। चारु चरित सुचन्द्र में, रहें वसन्त मनाय ।।
एक गृहस्थी प्रभात समय उठ कर, हाथ मुँह धोने के अनन्तर, परमेश्वर प्रेम के गीत गाया करता था। उसके वे सुरीले और स्वादीले गीत उसके सारे परिवार के छोटे बड़े बच्चों को कण्ठाग्र हो गये थे। तिथि त्यौहार को उसका सारा परिवार मिल कर, जब कीर्तन करता तो तब वहाँ एक अद्भुत समय बन्ध जाता और एक अपूर्व रस बरसा करता।
उसके पड़ोस में एक तार्किक रहता था। वह उस सारे नगर में बड़ा वैज्ञानिक माना जाता था। उसका यह निश्चय था कि मूल प्रकृति से भिन्न आत्मा-परमात्मा कोई वस्तु नहीं है। चेतनाचेतन जगत् केवल प्रकृति का विकार और विकास है। उसके अनेक अनुयायी उच्च कोटि के विद्वान् थे। वे सभी अपने मत का प्रचार करने में तत्पर रहा करते थे। उनके तर्क-वितर्क के सामने अनेक पण्डित हार मान जाते थे।
एक दिन ऐसा हुआ कि वह तार्किक उस भक्त गृहस्थी के घर पर निमंत्रित हो कर गया। वह दिन बसन्त पंचमी का दिवस था। उस शुभावसर पर वहाँ अनेक सज्जन सुर-ताल से हरि गीत गाने में मग्न थे। वह गृह-पति भी भावना के साथ भक्ति-रस-पूर्ण पदों को एक आवेश में अलाप रहा था। उसका मुख-कमल विकसित था और उसके दोनों कपोलों से उतरते हुए प्रेमाश्रु, मोतियों की लड़ी सी बन रहे थे। सुर ताल के गम्भीर नाद से उसकी रोम-राजी मनोहर मोर बन कर नाच रही थी। उन प्रेम-पूर्ण पदों का एक-एक शब्द सुनने वालों के हृदयों में बसता चला जाता था।
उस अद्भुत कीर्तन का उस वैज्ञानिक सज्जन पर, चुपचाप, आप ही आप ऐसा गहरा प्रभाव पड़ा कि उसके तर्क-वितर्क का कोट, कंगूरे सहित, स्वयं ही गिर गया। उसकी युक्तियों की माला तुरन्त टूट गई। उसके मस्तिष्क-वाद के सारे विचार बदल गये और वह सुर में सुर मिला कर आप ही हरि भजन गाने लग गया। उस पर भगवद्भक्ति का ऐसा गूढ़ा रंग चढ़ा कि तत्पश्चात् उसने स्वयं सत्संग लगा कर हरि गीत गाना आरम्भकर दिया। उसके अनुयायी भी उस सत्संग में सम्मिलित होकर आस्तिक बन गये।
रमें नाम-मधुमास में, राम भक्त मतिमन्त। उन के मन-वन में बसे, बारह मास वसन्त ।। (भक्ति-प्रकाश)
पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज का कथन है-`यदि किसी समय में सदा ही बसन्त रहती है, तो वह प्रातः का समय है।’
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर