व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

ब्रह्म-मुहूर्त में जागरण का महत्व

22nd Apr 2025

ब्रह्म-मुहूर्त में जागरण का महत्व

ऊषा के शुभ आँचल में हरि जी, मन्द मन्द मुस्काना।

प्रत्येक साधक को ब्रह्म मुहूर्त में जागना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त सूर्योदय से पूर्व का समय प्रातः 3 बजे से 6 बजे का समय होता है। इसे अमृतबेला भी कहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में पत्ते-पत्ते से प्राणवायु बहती है। चारों ओर शांत वातावरण रहता है। उस समय प्रकृति में सत्त्व गुण की प्रधानता होती है। उपासक को इन सात्त्विक-तरंगों का लाभ मिलता है। इस समय में परम-धाम से मुक्त आत्माएँ भ्रमण करती हैं। ध्यान में बैठा हुआ उपासक उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है।
ब्रह्म मुहूर्त में ध्यान-जाप-उपासना नियत समय पर करने का विशेष महत्व एवं प्रभाव है। इस समय में जो भी स्वास्थ्य संबंधी, व्यवसाय संबंधी, अध्ययन संबंधी कार्य करने पर भरपूर विशेष लाभमिलता है।
  • ऋग्वेद में वर्णन है- रानी ऊषा मनुष्य समुदाय के लिए चिकित्सा करती हुई काले आकाश से उठ खड़ी हुई है। (ऋग्वेद 1-1234)
  • संत महात्मा समझाते हैं ब्रह्म-मुहूर्त से बढ़कर और कोई पवित्र समय नहीं है। यही समय है जबकि प्रकृति का कोना-कोना पवित्रता से भरा रहता है। इससे मनुष्य का मस्तिष्क विकसित होता है, आलस्य दूर भागता है और हृदय में सदाचार के उत्तम विचार उत्पन्न होते हैं।
  • पूज्य श्रीस्वामी जी महाराज का कथन है-यदि किसी समय में सदा ही बसन्त रहती है, तो वह प्रातः का समय है।
ऊषा सुवर्ण सुवेश से, कर लीला संचार। सब को लाली दे रही, ले लीला अवतार ॥ [भक्ति-प्रकाश]
[राम सेवक संघ, ग्वालियर के वरिष्ठ साधक की धरोहर से]
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर