पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की महान व पवित्र जीवनी का अविरल स्त्रोत- ‘भक्ति-प्रकाश’
07th Jun 2025
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‘वाणी में पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के दर्शन’
24th May 2025‘वाणी में पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज के दर्शन’
पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने भक्ति-प्रकाश के खण्ड कथा-प्रकाश में अनेक कथाओं द्वारा भक्ति के एक-एक अंग को स्पष्ट करके समझाया है। इन कथाओं में प्रायः संत और भक्त के रूप में आये हुए पात्रों में पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की जीवन की झाँकी साफ-साफ दिखाई देती है।
कथा-प्रकाश की प्रत्येक कथा पाठक को एक संदेश या उपदेश देती जाती है। कथा-वस्तु और पात्र या चरित्र-चित्रण की दृष्टि से तो यह सभी कथाएँ असाधारण हैं ही, इनमें सबसे बड़ी बात देश-काल या वातावरण का चित्रण है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे सामने एक तत्कालीन चित्र ही उपस्थित कर दिया गया है।
कथा-प्रकाश खण्ड की एक कथा में आपका धर्म क्या है ?’ इस प्रश्न के उत्तर में प्रेम को ही अपना धर्म बताने वाले महात्मा कोई और नहीं, हमारे सद्गुरू श्री स्वामी जी महाराज ही हैं। आत्मा-परमात्मा का प्रेम ही श्री स्वामी जी महाराज की दृष्टि में परम धर्म है। इसी प्रकार हम श्री स्वामी जी महाराज की वाणी में उनके आन्तरिक स्वरूप का दर्शन करके आज भी उन्हें अपने अंग-संग अनुभव करते हुए उनसे दिव्य प्रेरणाएँ प्राप्त करते हैं और अपना जन्म सुफल तथा सार्थक बनाते हैं।
कथा प्रकाহা
एक आत्म-ज्ञानी, अनुभवी सन्त ने काशी नगरी में चतुर्मास तक रहना स्थिर कर लिया। वह प्रतिदिन सत्संग लगाया करता। उसके सत्संग में भक्ति रस की प्रधानता होती थी। एक दिन एक संन्यासी ने उससे पूछा- सन्त जी ! आप का धर्म क्या है? उसने उत्तर दिया प्यारे ! आत्मा प्रियस्वरूप है। उसी प्रेम सागर के प्रेम कण वासना वायु के साथ मिश्रित होकर बाहर के पदार्थों को, प्रिय रूप बनाते रहते हैं। आत्मा जिस वस्तु में अपने भावों को, अपनी वृत्तियों को, अपनी समता को, अपने स्नेह सम्बन्धों को, अपनी अनुकूलता के संकल्प को तथा अपने मन को स्थापित कर ले, वही वस्तु प्रिय रूप प्रतीत होने लग जाती है। वास्तव में तो प्रियस्वरूप वह आत्मा स्वयं ही है और वही प्रेममय अपने आप का तथा पर का ज्ञाता है। मैं आत्मा हूँ, इस कारण मेरा धर्म मेरा अपना प्रेममय स्वरूप है।
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ