व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

भगवन्नाम-जप के सुसंस्कार-2

11th Sep 2024

॥ श्रीराम ॥

भगवन्नाम-जप के सुसंस्कार-2

पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज का लेख

(गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘कल्याण’ जनवरी 2006 में प्रकाशित)

भगवन्नाम-जप के सुसंस्कारों का संचय, कुसंस्कारों के प्रभाव को दबा देता है, मंद कर देता है और कालान्तर में नष्ट भी कर देता है।
किसी दरबार में एक कर्मचारी की पत्नी महारानी की निजी दासी थी। दोनों में अति घनिष्ट सम्बन्ध, पूर्ण अपनापन था। दासी के पति ने एकदा राजकुमारी को देखा, मुग्ध हो गया, अपनी औकात को भूल कामना-पूर्ति की तीव्र-इच्छा के कारण दुःखी रहता है। पतिव्रता पत्नी पति के दुःख के कारण उदास रहती है। रानी ने आज उदासी का कारण पूछा। बार-बार पूछने पर सब कुछ बतला दिया, आशा थी दोनों को नौकरी से छुट्टी ही नहीं, कड़ा दण्ड भी मिलेगा, किन्तु भक्तिमयी रानी अति बुद्धिमान, सोच विचार कर कहा, ‘तू घबरा मत, मैं कन्या देने को तैयार हूँ, पर एक शर्त है। नगर की बाहरी सीमा पर हमारा जो बगीचा है, तेरा पति उसमें रहे, हर समय राम राम जपे, जो भेजूं वह खाये, छः माह बाद कन्या का हाथ उसके हाथ में दे दूँगी।’
राजकुमारी पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार दासी के पति ने राम राम जपना शुरू कर दिया। महल से सात्विक भोजन, दूध, फल निरन्तर जाता। भक्ति में आनन्द आने लगा, नाम जितना जपे, उतना अधिक मधुर लगे अविराम नाम जप से मन-बुद्धि में कुसंस्कारों की धूल धुल गई। दुर्विचार-सद्विचारों में बदल गये। दासी का पति सन्त-स्वभाव का हो गया, मन पवित्र हो गया।
छः माह पूरे हुए महारानी कन्या सहित पधारीं। दोनों के चरणों पर मस्तक रखा, कहा, `महारानी जी! इस देवि का विवाह किसी राजकुमार के साथ करें, राम-नाम ने मेरी कुदृष्टि बदल दी और मातृ-भाव जगा दिया। नाम-जप के दिव्य-शुभ संस्कारों ने मेरे वासनामय संस्कारों को दग्ध कर दिया। आप मुझे क्षमा करें, आपने मेरी आँखें खोल दीं। राम से अधिक चमत्कारी है- राम का नाम।’
पावन राम-नाम के संस्कार भी पावन, जो भीतरी अपवित्रता को उन्मूल (नष्ट) करके उपासक को पावन बना देते हैं और पवित्र, ईमानदार जीवन व्यतीत करने के लिए अडिग रहने का बल देते हैं।
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर