व्यास पूर्णिमा-विक्रम सम्वत् 2080

Shree Ram Sharnam Gwalior

श्री राम शरणम्

राम सेवक संघ, ग्वालियर

आदर्श दाम्पत्य-जीवन (1)

10th Dec 2024

॥ श्रीराम ॥

आदर्श दाम्पत्य-जीवन (1)

(पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज)

सनातन संस्कृति में सम्पूर्ण जीवन को चार आश्रमों में विभाजित किया गया है। इनमें गृहस्थ आश्रम का दूसरा स्थान है और उसके कर्तव्य-कर्मों को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। विश्व में अधिकांश संख्या गृहस्थों की है, यदि इनका जीवन साधनामय और भक्तिमय हो जाय तो यह विश्व-शान्ति का अमोघ साधन बन जाय, अतएव शास्त्रों, सन्तों-महात्माओं, ऋषि-मुनियों एवं मनीषियों की अधिकांश शिक्षाएँ इन्हीं के लिये केन्द्रित एवं वर्णित हैं। वस्तुतः सुखी-शान्त जीवन का आधार तो प्रेम ही है। सन्त जन कहते हैं-
फिर कर देखा जगत् जो, जहाँ प्रेम लवलेश।
वहाँ तो सुख रस है कुछ, शेष है कष्ट कलेश ।।
मित्र बन्धु सम्बन्ध में, स्नेह सूत है सार।
प्रेम बिना नीरस सभी, अपना पर संसार ।
(भक्ति प्रकाश)
ब्रह्मलीन स्वामी श्री अखण्डानन्द जी की एक शिष्या अपने नव-विवाहित पुत्र और बहू को आशीर्वाद ॥ दिलाने महाराज जी के पास लायी। सबने प्रणाम किया और बैठ गये। लड़का उच्छृंखल स्वभाव का, अंग्रेजी शिक्षा से बिगड़े हुए संस्कारों वाला था, उसकी न धर्म में आस्था थी, न सन्तों-महात्माओं के प्रति श्रद्धा। उसे सब पाखण्ड लगता। वह भगवान् और धर्म का मखौल उड़ाने वाला तथा साधु सन्त को समाज पर बोझ समझने वाला युवक था।
दुःखी माँ ने कई बार स्वामी जी से प्रार्थना की थी-‘कृपया आशीर्वाद दें, लड़के की उदण्डता दूर हो, वह सन्मार्ग पर चले।’ आज भी पत्नी के आग्रह से आया है, माँ के कहने से नहीं। महाराज ने पूछा- ‘बेटा ! तुम्हारे कितने हाथ हैं ?” कोई पूछने की बात है- दो हैं। और पत्नी के ?’ खीझकर उत्तर दिया, ‘उसके भी दो। और दो’ `दोनों मिला कर कितने हुए ?’ `चार’। ‘बेटा! पाँव कितने हैं ?’ अधिक खीझकर कहा- ‘दो मेरे, दो मेरी पत्नी के और दोनों के मिलाकर चार।’ ‘शाबाश बेटा ! जब पति-पत्नी सदाचारी जीवन व्यतीत करें अर्थात धर्मानुकूल चलें तो चतुर्भुज हो जाते हैं और यदि शास्त्र विरुद्ध दुराचारी जीवन-यापन करें तो बिलकुल पशुवत् चतुर्पाद हो जाते हैं। अधर्माचरण अर्थात् झूठ, भ्रष्टाचार, चोरी, बेईमानी तथा हेरा-फेरी धन तो दे सकता है, पर शान्ति नहीं। एक अर्थ के मिलने पर अनेक अनर्थ भी साथ हो लेते हैं।
‘युवक ने हाथ जोड़ कर कहा- ‘मैं आप के उपदेश का सदा ध्यान रखूँगा।’ `धन्यवाद बेटा! सुखी दाम्पत्य-जीवन के लिये एक बात और याद रखना-जिन्दगी में झुकना सीखना, जिसे झुकना आ गया, वह बाजी मार गया। आज के युग में यह दुष्कर कार्य है। देखो न, आज का पति पत्नी के आगे नहीं झुकता, पत्नी पति के आगे नहीं झुकती – मैं किस बात में कम हूँ? तो दोनों कचहरी में मिलते हैं। सहना न जानने वाली सास बहू के आगे नहीं झुकती। उसका स्थान उच्च है, बहू अपने को अधिक बुद्धिमान समझती है, अतः सास के आगे नहीं झुकती तो पहले चूल्हा अलग होता है, फिर एक को घर छोड़ वृद्धाश्रम जाना पड़ता है। या किराये के मकान में रहना पड़ता है। मत सोचना कि झुकना अर्थात् निराभिमानता-विनम्र होना कमज़ोरी का चिन्ह है, नहीं, यह शूरवीरता एवं महानता का प्रतीक है।’
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर