ब्रह्म-मुहूर्त में जागरण का महत्व
22nd Apr 2025
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21 दिवसीय विशेष साधना-यज्ञ के महत्वपूर्ण बिन्दु
10th Apr 202521 दिवसीय विशेष साधना-यज्ञ के महत्वपूर्ण बिन्दु
आशा है आपने विशेष साधना-यज्ञ के लिए अपने नाम लिखवाकर फार्म प्राप्त कर लिए होंगे। इस यज्ञ के महत्वपूर्ण बिन्दु संक्षेप में निम्नानुसार हैं, कृपया ध्यानपूर्वक पढ़ लें तथा समझ लें-
■ प्रातः जागरण : पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज का कथन है- ‘यदि किसी समय में सदा ही बसंत रहती है, तो वह प्रातः का समय है।’ प्रत्येक साधक को ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से पूर्व, 4 बजे) में जागना चाहिए। इस समय सत्वगुण की प्रधानता होती है। हमें इन सात्विक तरगों का लाभ प्राप्त करना चाहिये। इस यज्ञ में आप अपने प्रातः जागरण का समय स्वयं निश्चित करें जिसके अनुसार आप ध्यान (4 से 6 बजे) में बैठ पायें। फार्म पर नोट कर लें तथा प्रत्येक दिन आप जितने बजे उठें (जल्दी/विलम्ब से) उस बॉक्स में लिख लें।
■ प्रातः ध्यान : दीक्षा ग्रहण करते समय हम साधकों ने ध्यान करते रहने का दीक्षा-व्रत लिया है और गुरु को वचन भी दिया है, अतः हमें ध्यान नित्य प्रातः एवं सायं करना चाहिए। आप प्रातः 4 से 6 बजे तक अपनी सुविधानुसार अपना ध्यान का समय निश्चित कर लें। प्रयत्न करें, ध्यान के लिए- एक समय, एक स्थान, एक आसन। भूल-चूक होने पर परमेश्वर से क्षमा मांगकर अपने परिवर्तित समय को फार्म में नोट कर लेवें।
■ प्राणायाम/व्यायाम/भ्रमण : पूज्यश्री स्वामी जी महाराज के अनुसार, ध्यान में बैठने से पूर्व हमें पाँच बार प्राणायाम (deep breathing) करने चाहिए। व्यायाम/भ्रमण का समय आप अपनी सुविधानुसार नियत कर सकते हैं।
■ सायं ध्यान : संध्या काल में 6 से 7 बजे तक का समय निश्चित कर लें। अपने कार्यक्षेत्र में व्यस्त होने होने के कारण यदि आप इस समय पर ध्यान नहीं कर पाते हैं तो सोने से पूर्व ध्यान का समय निश्चित कर लें, नियम अवश्य निभायें तथा नोट कर लें।
■ जाप : नित्य माला से जाप करना चाहिए। नित्य जाप की संख्या कम से कम 10,000 से 20,000 तक होनी चाहिए। संख्या नियत कर लें तथा कम/अधिक होने पर नोट कर लें।
■ स्वाध्याय : हमें नित्य स्थितप्रज्ञ के लक्षण लघु ग्रंथ का कम से कम 10 मिनट स्वाध्याय करना है। ‘स्वाध्याय से अपने इष्ट देव का परम मिलाप होता है।’
■ अमृतवाणी पाठ : श्री स्वामी जी का कथन है- `अमृतवाणी में राम-नाम की महिमा गाई गयी है। मुझे इसकी रचना से बड़ा लाभ हुआ। मैं समझता हूँ, जो भी भक्ति पूर्वक पढ़ेगा, उसे भी लाभ होगा। उस पर राम-कृपा होगी।’ अतः हमें प्रतिदिन सिद्ध अवतरित ग्रंथ अमृतवाणी का पाठ करना है।
■ मौन : शरीर का मौन, मन का मौन एवं हृदय का मौन। अध्यात्म में मौन का बहुत महत्व है। मौन से हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा संचित होती है। अतः हमें 10 मिनट मौन का अभ्यास करना है।
इस यज्ञ में भाग लेने से हमारी दिनचर्या व्यवस्थित होगी, राम-नाम के प्रति प्रीति तथा विश्वास बढ़ेगा तथा जीवन आनन्दमय एवं राममय हो जायेगा।
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर