ध्यान का महत्व
26th Apr 2025
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आदर्श दाम्पत्य-जीवन (2)
22nd Dec 2024॥ श्रीराम ॥
आदर्श दाम्पत्य-जीवन (2)
(पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज)
एक बस्ती में पाँच सदस्यों का परिवार, छोटा-सा घर, उसमें वृद्ध-वृद्धा, उनके दो पुत्र तथा एक पुत्री रहते। आय का कोई साधन नहीं। जंगल से लकड़ियाँ काट, शहर में बेचते तो रोटी का गुजारा चलता। संतान पर नियंत्रण न रहा, बच्चे पढ़-लिख न सके, बिगड़ गये। स्वभाव झगड़ालू और उद्दण्ड हो गया। सर्वाधिक चिन्ता पुत्री की लड़की के हाथ पीले कैसे हों ?
भाइयों ने कुटिल योजना बनायी-किसी धनवान के साथ उसका विवाह रचते हैं, किसी बहाने पति को मरवा देंगे। इससे प्रचुर धन की प्राप्ति होगी, बहन की शादी कहीं और कर देंगे और स्वयं भी शादी करके आराम से जीवन व्यतीत करेंगे। तनिक भाग-दौड़ करने पर एक धनिक युवक मिल गया, उससे बीस हजार रुपये ले लिये और शादी कर दी। विदाई के समय बहन को समझा दिया-शीघ्र ही पति का काम तमाम कर देना। बहन ससुराल चली गयी। शादी के तीसरे दिन पति के साथ मायके फेरा डालने के लिये चल पड़ी, प्यास का बहाना बनाकर कुएँ की ओर ले गयी। पति कुटिल चाल से अनभिज्ञ कुएँ से पानी निकालने लगा, पत्नी ने धक्का मारा और बेचारा पति कुएँ में जा गिरा। पत्नी मायके पहुँच गयी, ससुराल से सारा सोना, चाँदी, नगदी पहले ही साथ बाँध लायी थी। भाई प्रसन्न ।
युवक तैरना जानता था, कुएँ के भीतर से आवाज सुन प्यासे राहगीरों ने बाहर निकाला, कपड़े सुखाये और ससुराल पहुँच गया। जीवित देख कर सभी चकित एवं दुःखी। पति ने जतलाया नहीं-किसी प्रकार की कोई चर्चा नहीं की। रीति-अनुसार अगले दिन ससुराल से पति ने पत्नी सहित विदा ली। समय के साथ परस्पर प्रेम बढ़ता ही गया। कई साल बीत गये, दो पुत्र पैदा हो गये। संतान के प्रति प्रेम और ममता में पति-पत्नी ऐसे एकाकार हुए जैसे दूध-पानी।
पुत्र जवान हुए, बड़े चाव से, धूम-धाम से उनके विवाह हुए। उनके भी बच्चे हुए। दादा-दादी फूलते-फलते सम्पूर्ण परिवार को देख-देख प्रसन्न एवं संतुष्ट होते। पति इस सब के लिये भगवान का लाख-लाख शुक्र मान कृतज्ञता व्यक्त करता-प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठता, घंटों राम-नाम जपता। दिनभर भी जप-पाठ, स्वाध्याय-सत्संग में निमग्न रहता।
एक बार बड़ी वधू ने ससुर से पूछा- ‘पिता जी ! आप राम-राम इतना क्यों जपते हो ?’ ‘बहू ! भगवान् से बड़ा भगवान का नाम, राम से अधिक शक्ति है राम-नाम में। श्रीराम ने स्वयं आकर एक आध को बचाया है, परन्तु राम-नाम तो नित्य-प्रति लाखों-करोड़ों का उद्धार करता है। राम नाम में असीम शक्ति है एवं अपरिमित सामर्थ्य। इसने न केवल मेरी जान ही बचायी है बल्कि मुझे क्रोध, झगड़ा, वैर-विरोध, अशान्ति तथा न जाने कितनी ही बुराइयों से बचाया है। राम-नाम जपने का अर्थ है- कभी किसी के दोष न देखना, कभी किसी की बुराई को न उछालना, बल्कि पर्दा डालना। बेटी! तब जीवन सदा शान्तिपूर्वक बीतेगा। जापक के अन्दर से बदले की भावना उन्मूल (समाप्त) हो जाती है, वह तो शुद्ध प्रेम की मूर्ति बन जाता है।’
पत्नी भी पास बैठी सुन रही थी-सोचा ऐसे देवतुल्य पति का साहचर्य पाकर मैं धन्य हो गयी। कितनी भाग्यशाली हूँ मैं! पति-हन्ता होते हुए भी मेरे पति अतुल्य क्षमावान, राम-नाम का ही प्रताप है। आँसू बहे पश्चाताप के, प्रायश्चित हुआ और वह राम-नाम की उपासिका बन गयी। प्रेम सहनशीलता और क्षमा की करामात थी यह !
प्रेषक : श्रीराम शरणम्, रामसेवक संघ, ग्वालियर