ध्यान का महत्व
26th Apr 2025
लेख पढ़ें >
भगवन्नाम-जप के सुसंस्कार-1
25th Aug 2024॥ श्रीराम ॥
भगवन्नाम-जप के सुसंस्कार-1
पूज्यश्री (डॉ.) विश्वामित्र जी महाराज का लेख
(गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘कल्याण’ जनवरी 2006 में प्रकाशित)
राम-नाम जप द्वारा व्यक्ति सुसंस्कृत होकर अपने माथे के कुलेखों को भी बदल लेता है अर्थात् कुसंस्कारी भगवन्नाम जप के शुभ-दिव्य संस्कारों द्वारा निन्दनीय न रहकर वन्दनीय बन जाता है। उसके विचारों, उसके आचरण एवं स्वभाव में उल्लेखनीय परिवर्तन प्रत्यक्ष दिखाई देने लगता है।
एक बार सम्राट अकबर एवं बीरबल ने मार्ग में किसी ब्राह्मण को भीख मांगते देखा। राजा ने व्यंगात्मक संबोधन द्वारा मंत्री महोदय को पूछा, ‘यह क्या है ?’ बीरबल तीव्र बुद्धि वाले, तत्काल उत्तर दिया, ‘महाराज ! भूला हुआ है ?’ ‘तो इस पंडित को रास्ते पर लाओ’ राजा ने तत्क्षण कहा। `आ जायेगा, राजन! समय लगेगा। कृपया तीन माह की अवधि दीजियेगा।’
शाम को बीरबल ब्राह्मण के घर पहुँचे, विद्वान होकर भीख मांगने का कारण पूछा और कहा, `ब्राह्मण देवता ! कल से प्रातः चार बजे जागें और मेरे लिये दो घंटे राम नाम जपा करें। शाम को निर्वाह हेतु एक स्वर्ण मुद्रा आपके घर पहुँचा दी जायेगी।’ पिछले जन्म के, कुल के संस्कार थे, चार बजे उठने में, जप करने में कोई कठिनाई नहीं। मुद्रायें एकत्रित कर धनवान हो गये।
अभ्यास करते-करते राम-नाम के दिव्य संस्कारों ने दबे सुसंस्कारों को उभारा। यदि बीरबल के लिए जपने से राम-नाम ने धनाढ्य बना दिया है तो स्वयं के लिए भी क्यों न जपूँ ? चार घंटे रोज जप होने लगा। मकान बन गया, परिवार सुखी, हर सुविधा से सम्पन्न हो गया। नाम मीठा लगने लगा, कामनायें शून्य होने लगीं। अतः बीरबल से निवेदन किया, ‘अब जाप केवल अपने लिये करूंगा, आप कृपा करके स्वर्ण मुद्रा न भेजें।’ राम-नाम की आराधना ने विवेक-वैराग्य जागृत कर दिया, प्रभु भक्ति की लगन लग गई।
ब्राह्मण देवता ने अवसर पाकर पत्नी से कहा, `देवि ! ईश्वर-कृपा से घर में सब कुछ है, प्रचुर है, जीवनयापन निर्विघ्न निभ सकता है, आप अनुमति दें तो मैं उद्यान में एकान्त में जप-साधना करना चाहता हूँ।’ पत्नी ने सहर्ष स्वीकृति दी। ब्राह्मण सतत् राम-नामोपासना से राम-नाम में रंग गये, चेहरा नूरी हो गया। लोग दर्शनानार्थ पधारने लगे। सूचना जा तक भी पहुँची। वे बीरबल सहित इस पहुँचे हुए महात्मा के दर्शन करने पधारे। संत उच्च स्थान पर विराजमान हैं, राजा-प्रजा सब नीचे बिछी चटाई पर आसीन हैं। मनमोहक शान्त मुख को अपलक निहार रहे हैं बादशाह अकबर। अद्भुत शान्ति लाभ हुई। जाते समय कहा, `महाराज ! मैं भारत का बादशाह अकबर आपसे प्रार्थना करता हूँ, यदि आपको किसी भी पदार्थ सामग्री की आवश्यकता हो तो निःसंकोच संदेश भिजवाइयेगा, तत्काल आपकी सेवा में पहुँच जायेगी।’ ब्राह्मण मुस्कराये कहा, ‘राजन! तेरे पास ऐसा कुछ नहीं जिसकी मुझे जरूरत हो, हाँ यदि तुझे कुछ चाहिये तो माँग लो। जो मुझसे मिलेगा, यहाँ से मिलेगा, वह किसी अन्य से कहीं नहीं मिलेगा।’ भक्ति किसी संत, भक्त एवं आप्त पुरुष से ही मिलती है।
बीरबल ने पूछा- ‘राजन् ! आपने पहचाना इन्हें ? यह वही ब्राह्मण हैं, जो तीन माह पूर्व भीख माँग रहा था।’ राम-नाम जाप ने भिखारी को सच्चा दाता बना दिया, वास्तविक धन का धनी। राम-नाम के सुसंस्कारों के प्रताप ने लोक परलोक दोनों सुधार दिये।
मनके मनके से जपे, भाव सहित हरिनाम। सर्व सिद्धि को लाभ कर, होवे पूर्ण काम ।।
प्रेषक : श्रीराम शरणम् रामसेवक संघ, ग्वालियर
visit us@ Website: www.shreeramsharnamgwalior.org